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________________ ध्यानयोग विधि- १ चौथी मुद्रा : तुला- आसन तीसरी मुद्रा बायाँ पैर जो आगे रहा, उसे पीछे फैलाकर दायें पैर के पास ले लाएँ और हाथ-पाँव के बल शरीर को सीधा रखें- झुकी हुई तराजू की तरह । ११५ पाँचवीं मुद्रा : शशांक- आसन पंजों और घुटनों के बल वज्रासन में बैठ जाएँ हाथ जमीन से लगे रहेंगे। सिर दोनों हाथों के मध्य रहेगा तथा ललाट भूमि पर । दोनों नितम्ब एड़ियों पर टिके रहेंगे । छठी मुद्रा : साष्टांग प्रणाम- आसन पेट के बल उल्टा लेट जाएँ, हाथ सीधे सामने की ओर रखें । शरीर पूरा ढीला रखें। गर्दन को सीधा करें, ललाट जमीन से स्पर्श हो और प्रणाम-भाव के साथ तीन गहरी साँस लें । सातवीं मुद्रा : भुजंगासन दोनों हथेलियों को पसलियों के पास धरती पर टिकाकर कन्धे और नाभि के हिस्से को साँस भरते हुए ऊपर की ओर उठाएँ - नागफन की तरह आठवीं मुद्रा : धनुरासन जमीन पर उल्टा लेट जाएँ। पैरों को घुटने से कमर की ओर मोड़ें । हाथों से पैरों को टखनों के पास पकड़ें। शरीर को दोनों ओर से भीतर खींचने का प्रयास करें। सिर ऊपर की ओर उठाएँ । * नौवीं मुद्रा : पर्वतासन साँस छोड़ते हुए हथेलियों को सामने फैलाकर जमीन पर रखें। पैरों को सीधा करें । कमर को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएँ । हाथ और पाँव के * सातवीं मुद्रा में भुजंगासन, आठवीं मुद्रा में पर्वतासन और नौवीं मुद्रा में शशांक- आसन भी मान्य हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003858
Book TitleEk Sadhe Sab Sadhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1997
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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