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वही मनुष्य का कर्णधार है।
नदियां भी बहुत हैं, नावें भी बहुत हैं। कदम-कदम पर किनारे हैं पर हमारा किनारा कौनसा है, हमारी मंजिल का मार्ग कौनसा है, आज का पद मात्र इसके लिए माझी की पुकार है। साधक को एक साथी का इंतजार है, जो दे उसे स्नेह का स्पर्श, जिससे कुछ बातें हो सकें, जो भीतर की महागुफा में, छिया-छी खेला करे, कुछ ऐसा कि.....यानी भीतर के अहोभाव में रसलीन हो सके।
प्राणों के गहरे गह्वर में करुणामय विहरो। मेरे मन के अन्धतमस् में ज्योर्तिमय उतरो।
मन के घुप्प अंधकार में ज्योर्तिमय को आह्वान! आत्म-जागरण की पहचान है यह। बढ़े चलो!
नमस्कार!
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सो परम महारस चाखै/६५
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