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है । समता उपलब्ध हो गई, तो जीवन की दिव्यता आत्मसात हो गई । ममता उपलब्ध हुई तो मानवीयता उपलब्ध हो गई और विषमता उपलब्ध हुई तो पशुता उपलब्ध हुई । समता, दिव्यता, ममता, मानवता, विषमता पशुता है ।
समता, ममता में रूपांतरित होती है, तो वह सीमित होकर रह जाती है। ममता, समता में रूपान्तरित होती है, तो वह विराट रूप धारण कर लेती है । ठीक इसी तरह जिस तरह पानी का गड्ढे में बंध जाना समता का ममता में रूपातंरण है और सरिता, जो सागर में मिल कर विराट रूप धारण कर लेती है, यह ममता का समता में रूपातंरण है ।
ममता को समता में ऐसे रूपांतरित करो कि ममता व्यक्ति को सारे संसार में विराट बना दे, सारे संसार के लिए न्यौछावर कर दे । मदर टेरेसा की ममता मात्र ममता नहीं वरन् ममता का समता में रूपांतरण है, तभी तो वे आज विश्व के लिए विराट बनी हुई हैं। उन्हीं की तरह अपने आप को सारे विश्व की मानवता हेतु न्यौछावर करो ! रूपान्तरित करो !
कलकत्ता में एक बार क्षय रोग बड़े जोरों से फैला। ममता की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा रोगियों की सेवा के लिए कलकत्ता आयीं, तो लोगों ने सोचा कि टेरेसा अपनी सेवा के बदले में उनका धर्म परिवर्तन करवा लेगी । इसी भय के कारण लोगों ने टेरेसा को काफी परेशान किया मगर ममतामयी टेरेसा अपने काम में लगी रहीं ।
कलकत्ता के सबसे बड़े काली देवी के मंदिर का पुजारी मदर टेरेसा का बड़ा विरोधी था । संयोग से पुजारी को भी क्षय रोग ने धर दबोचा। मदर टेरेसा तो वहां सेवा के लिए आई थीं; अपने विरोध का दमन करने के लिए नहीं । वे उस पुजारी को अपने सेवा संस्थान 'निर्मल हृदय' में ले आईं। अपनी सेवा से उस पुजारी को नया जीवन प्रदान किया ।
पुजारी जब स्वस्थ होकर बाहर आया, तो उसने विरोध करने वाले लोगों से कहा कि मैं जीवन भर इस पत्थर की काली देवी की पूजा करता रहा मगर जीती-जागती काली देवी को देखना है, तो वह मदर टेरेसा है । हमारी ममता इस तरह से विराट रूप ले लेती है कि
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सो परम महारस चाखै/७३
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