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________________ मिल सकती है। आदमी मंदिर जाता है। वहां वह बालकृष्ण की छोटी-सी मूर्ति का पूजन करता है, उसे भोग लगाता है। वही व्यक्ति घर आकर अपने आठ वर्षीय बच्चे को चांटा मारता है। तुमने एक पाषाण के परमात्मा को तो धोक लगाई और जीवित परमात्मा को चांटा लगाया। तुम एक मूर्ति के सामने तो धोक लगाने को तैयार हो और एक जीवित इन्सान को जिसमें प्रेम, समर्पण, निश्छलता, वीतरागता है उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हो। ___ कोई बच्चा, बच्चा नहीं। कोई बड़ा, बड़ा नहीं। आत्मा की दृष्टि से सभी समान हैं। लाओत्से के बारे में प्रसिद्ध है कि जब वह पैदा हुआ तो वह बूढ़े की तरह पैदा हुआ। बच्चे की तरह पैदा नहीं हुआ। वह बूढ़ा पैदा हुआ, इसका मतलब यह नहीं कि वह चेहरे पर झुर्रियां लेकर पैदा हुआ होगा या पैदा होते ही लाठी के सहारे चलता होगा। वह ज्ञान-वृद्ध पैदा हुआ। जन्म के साथ ही प्रज्ञा, सधी हुई दृष्टि लेकर पैदा हुआ। जरा कल्पना करो, शंकराचार्य कोई बूढ़े होकर नहीं मरे मगर फिर भी वे महान-वृद्ध होकर गुजरे। तैंतीस साल की उम्र में तो शंकराचार्य चल ही बसे लेकिन इतनी अल्पायु में भी ज्ञान का जो सृजन किया, ज्ञान की किरण को धरती पर उतारा, हिन्दू धर्म के दो हजार वर्षों के इतिहास में उनकी टक्कर का कोई आचार्य नहीं हो पाया। सीखने की ललक है तो धरती पर कहीं भी चले जाओ. हर व्यक्ति तुम्हारा गुरु है। आनंदघन कहते हैं- मैंने तो मान लिया । झमेला ही खत्म हो जाए कि यह शिष्य, वह गुरु। सारा जगत् ही मेरा गुरु है। अब कोई वाद-विवाद नहीं है कि किसको गुरु कहूं और किसको चेला कहं। अब मेरे लिए कोई व्यक्ति-विशेष गुरु नहीं है। सीखना चाहते हो तो झरने के पास जाकर बैठ जाओ। बहते हुए झरने को देखो, तुम्हें कर्मयोग की प्रेरणा मिलेगी। पानी पर उठने वाली तरंगों को देखकर संसार की नश्वरता का बोध होगा। तुम्हें संसार भी ऐसा ही नश्वर, जीवन भी ऐसा ही क्षणभंगुर दिखाई देगा। झरनों का नाद तुम्हें जीवन में भी मिल जाएगा। तुम गुलाब के फूल को जाकर देखो तो वह महकता हुआ, मस्त, प्रसन्न दिखाई देगा। तुम चाहो तो अपने-आपको गुलाब के फूल की तरह खिला सकते हो; कांटे की तरह कांटा बन सकते हो और फूल की सो परम महारस चाखै/५६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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