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________________ मौहल्ले में वह खुदा हुआ है। कुआ उनका है, जो उस कुए का पानी पीते हैं। पानी उनका है जो प्यासे हैं। कुए के किनारे बैठकर बातें चाहे जितनी कर लो लेकिन कुए के किनारे बैठकर बातें करने से कुआ तुम्हारा नहीं हो जाएगा। प्यास नहीं बुझेगी। गुरु भी उनके लिए हैं, जिनके हृदय में गुरु को खोजने के लिए कोई तड़पन है, गहरी तमन्ना है, अभीप्सा है। एक ऐसी प्यास जिसमें और सारी प्यासें तिरोहित हो जाएं। जिनके अन्तर-मन में अपने व्यक्तित्व के परम-विकास के लिए, चेतना के परम-विकास के लिए गहरी मुमुक्षा है, उन्हीं के लिए सद्गुरु की सार्थकता है। कबीर कहते हैं- सद्गुरु तेने जानिये, सत से देय मिलाय। सद्गुरु जो हमें सत् से मिला दे। सत् से जो साक्षात्कार करवाए वही गुरु है। जो आत्म-मिलन करवा दे वही गुरु है। सद्गुरु का पहला काम है- व्यक्ति के अन्तर-मानस में जो मूर्छा है, मूर्छा की जो जंजीरें और शलाकाएं पड़ी हैं, उन जंजीरों को खोले; उन बंधनों को खोले। पिंजरे से मुक्ति दे -अनंत आकाश में उड़ान भरने के लिए। गुरु का पहला काम होता है, मूर्छा को तोड़ना, व्यक्ति को उस संदेश का स्वामी बनाना, जिससे वह अपने बंधनों को नीचे गिरा सके, अपनी ग्रंथियों को खोल सके। गुरु का काम है- वह संदेश देना, जिससे हमारी मूर्छा टूट सके। दूसरा काम है- साधक का जो परम-श्रेय हो सकता है, वह परम-श्रेय प्राप्त करने में उसकी मदद करे। व्यक्ति मूर्छित है तभी तो संसार उसके लिए संसार है। जिस दिन मूर्छा टूट जायेगी। उस दिन संसार नहीं रहेगा। मूर्छा है, तब तक दलदल है। जिस दिन मूर्छा टूट गई, उसी दिन कीचड़ में कमल खिल आएगा। फिर कोई दलदल, दलदल नहीं रहेगा। फिर तो वहाँ से कमल की पंखुड़ियाँ निर्लिप्त होकर खिल उठेंगी। ऐसा भी नहीं है कि व्यक्ति को दलदल में फंसे होने का ज्ञान नहीं है। ज्ञान तो है। समझ भी गहरी है, अक्ल तो है, बहुत कुछ उसने अब तक समझ रखा है, सुन रखा है। उसने आदर्श को भी सुना है, आदेश को भी सुना है और उपदेश को भी सुना है लेकिन इसके बावजूद मनुष्य की मूर्छा इतनी सो परम महारस चाखै/५३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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