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________________ कि हमें अपने युग में ही अपने सद्गुरु की तलाश करनी होगी। अतीत की उज्ज्वलता का मात्र स्मरण ही नहीं करना है अपितु वर्तमान को उज्ज्वल करने का प्रयास भी करना है। सद्गुरु की स्मृति निश्चित ही लाभप्रद है लेकिन अतीत का सद्गुरु जीवन में क्रान्ति घटित नहीं कर सकता। जीवित सद्गुरु ही आत्म-चेतना के साथ जीवन का सम्बन्ध जोड़ सकता है। शाश्वत मूल्यों को उपलब्ध करने में हमें मदद दे सकता है। हम गुरु का स्मरण करें, गुरु को याद करें, किसी परम-पुरुष को याद करें, तो हमारे भीतर भी चैतन्य-जागरण के स्फुर्लिंग प्रकट होने लगते हैं। चेतना परिवर्तित होने लगती है। भावनात्मक रूपान्तरण घटित होता है। खिले हुए फूल को देखो। किसी खिलते हुए फूल को देखकर हमारे भीतर भी कोई फूल खिलने लगता है। बहते हुए झरने का स्मरण करो, तो हमारे भीतर झरने जैसा कल-कल नाद प्रारंभ हो जाता है। निरंतर आसमान को देखते चले जाओ, भीतर भी आकाश जैसा विराट शून्य प्रकट होने लगता है। जैसा देखो, जैसा सोचो, वैसा ही भीतर प्रकट होने लगता है। गुरु की स्मृति भी व्यक्ति के लिए फायदेमंद होती है। गुरु की याद के साथ अगर जीवित सद्गुरु की तलाश भी प्रारंभ करो, तो जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन होने की संभावना है। अतीत के गुरु की याद और वर्तमान के गुरु की खोज! ऐसा नहीं है कि शिष्य ही गुरु की तलाश करता है वरन् गुरु भी सही शिष्य की तलाश करता है। गौतम को महावीर जैसे सद्गुरु मिले, यह गौतम का सौभाग्य था पर महावीर को गौतम-सा शिष्य मिला, इसे भी कम सौभाग्य की बात न समझें। गौतम-सा समर्पित शिष्य, खोजने से न मिलेगा। मेरी नजर में तो सद्गुरु को पाना जितना मुश्किल है, सही शिष्य को पाना उससे भी कठिन है। इतिहास में द्रोणाचार्य हजारों मिल जाएँगे पर एकलव्य जैसे पाँच-पच्चीस भी नहीं। बिना अर्जुन के भला कृष्ण के मुख से गीता कैसे अवतरित होती? जैसे गोमुख से गंगा निःसृत होने का श्रेय भागीरथ को जाता है, वैसे ही गीता के अवतरण का श्रेय अर्जुन को दिया जाना चाहिये। कहने भर को तो जीवन में गुरु कई मिल जाएंगे, ऊँचे-ऊँचे पदों पर भी, पर लिखने भर से तो कोई गुरु नहीं हो जाता। हर साधु अपने जगत् गुरु मेरा/५० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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