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________________ कल तो निश्चित तौर पर आएगा लेकिन कल भी वह यही कहेगा। यों हर दिन व्यक्ति जीवन को कल पर टालता चला जाएगा। आज वह बटोरेगा, कल की व्यवस्था के लिए। अरे भले मानुष! जो प्रकृति हमारे आज की व्यवस्था कर रही है, वह कल की भी करेगी। अगर कल प्रकृति की ओर से फाका लिखा है, तो तुम कल की कितनी भी व्यवस्था कर लो, फाका ही रहेगा। धन उपयोग के लिए है, बटोर कर रखने के लिए नहीं। पर आदमी बटोरेगा। वह मस्जिद-मंदिर जाता आता है, तो पैसे के लिए जाता है, धर्म के लिए नहीं जाता, पुण्य के लिए नहीं जाता, मुक्ति के रसास्वाद के लिए नहीं जाता। स्वार्थ के कारण आदमी मंदिर पहुंचता है। मुक्ति की कामना लिए नहीं पहुंचता। बाबा कहते हैं- आई अचानक काल तोपची, गहैगो ज्यूं नाहर बकरी। मृत्यु जब आएगी, तो कितना भी क्यों न बटोर लो, ये बटोरा हुआ यहीं रह जाएगा। देकर खुश बनो, संजो कर नहीं। हमारा तुच्छ धन, माटी का तन, किसी के काम आता है, किसी बेसहारे का सहारा बनता है, भूख से तड़पते किसी इंसान का पेट भर सकता है, किसी की बुझी आँखों में रोशनी दे सकता है, तो यह हमारा महान सौभाग्य होगा। हमारा शरीर माटी बने, इससे पहले यह किसी की सेवा में काम आ जाता है, तो यह शरीर की सार्थकता है। 'सुपन राज साँच करि राचत, माचत छाँह गगन बदरी ।' यह संसार तो सपने की तरह है लेकिन आदमी का यह दुर्भाग्य है कि आदमी स्वप्न को हमेशा सच समझता है। जीवन के आसमान में बदली आ जाती है, आदमी बदली की छांह में जी कर सोचता है कि उसे बहुत आनन्द मिल रहा है। लेकिन बाबा यह कहना चाहते हैं कि आखिर बदली की छांह कितनी देर की? फिर तो वही धूप! सपने के संसार का सुख कितने देर का? मृत्यु कभी सत्य की नहीं होती, सपने की होती है। सच और सपने में फर्क होता है। हर वर्ष, नया साल आता है। आदमी नये सपनों की तलाश करता है पर सच आदमी को नहीं छोड़ता। वह नसीब बनकर आदमी का सहचर बना रहता है। टूटते केवल सपने ही हैं, सच नहीं टूटता । गगन में उमड़ने वाली बदलियों की छांह मात्र से आदमी मचल रहा है और सपने के राज्य को सच्चा मान कर उसमें रच-बस रहा है। हम पंछी आकाश के/४४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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