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________________ रस गगन गुफा में अजर झरे, बिन बाजा झंकार करे। जब ध्यान धरें, तो समझ परे । गगन की गुफा में, अन्तस् के आकाश में रस भरी बदरिया बरस रही है। आसमान में काले बादल नहीं हैं, लेकिन सहस्त्रार के अन्तस् के आकाश में रस के झरने झर रहे हैं। यह तो बगैर बादल की बारिश है। बगैर गर्जना की बिजली है, बगैर बाजों की झंकार है। पाँव रुके हैं, फिर भी पदचाप है, पावों की आहट है। करताल नहीं है, फिर भी अनहद नाद है -रस गगन गुफा में अजर झरे । अन्तस् के आकाश में, अन्तर-हृदय की महागुफा में, प्रेम का, आनन्द का, आह्लाद का रस झर रहा है। लेकिन यह सब तभी होता है, इसका अनुभव और इसकी समझ भी तभी आती है, जब ध्यान धरो, गहरे पानी पैठो। अपना रूप देखो। ___'पिया बिन झूरूं खरी', निश्चय ही रस की कोई फहार हमें भिगो रही है। हमारे मन की आंखों में और ज्यादा खुमारी चढ़ रही है कि पिया के बिना सारा जग सूना लगता है। पिया है, तो सब है। बिना पिया सब सून । तुम्हें तुम्हारा पिया मिल जाये, तो पाना न पाने जैसा होगा, लेकिन यह तो वह पिया है, जो न मिलने पर भी इतना रस और सुख देता है, तो मिलने पर तो क्या कहना! अन्तरात्मा गहरे सुख से नाच उठती है। तब कोई यह नहीं देखता कि वह कहाँ खड़ा है। तब जंगल में चैतन्य नाच उठता है। चिड़ियाएं उसके लिए बांसुरिया बजाती हैं। पात-पात बातें होने लगती हैं। चारों ओर से रोशनी की, आनन्द की, परम-धन्यता की बरसात होने लगती है। तब राजरानी मीरा भूल ही जाती है कि वह महलों की महारानी है। उसकी चूड़ियां तो करताल बन जाते हैं और पायल धुंघरू। बाबा आनन्दघन हों या घनानन्द, मीरा हो या कबीर, नानक हो या जीसस -मिलनी से सब अभिभूत होंगे ही। यहां तो खोना है, खो-खोकर खोजना है, पाना है। बाबा को सुनना महज एक प्रयोग भर है, प्रयोग के सूत्र भर हैं। अपनी अन्तर्-दृष्टि को भीतर की ओर मोड़ो, भीतर गये बिना भीतर का भगवान नहीं मिलता। हमारे तन-मन में, रग-रग में, सब में उसका स्पंदन है, उसकी धड़कन है। अन्तस् के आकाश में भीतर बैठी मौन सत्ता की ओर सो परम महारस चाखै/१२७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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