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________________ औरों का कर्दम धोने को, उसने भी कितनों को झेला। पीड़ा भी सखि! दिया करती, मधुरिम सुहाग की सुख-वेला! परमात्मा के मार्ग पर जिन्होंने कदम बढ़ाए हैं, उनके लिए परमात्मा को उपलब्ध होने के तीन विकल्प हैं। पहला विकल्प हैसमर्पण। आदमी परमात्मा के आनंद में, उसके अहोभाव में अपनी स्वतन्त्रता को वैसे ही मिटा दे, जैसे बूंद सागर में विसर्जित हो जाती है, जैसे बीज माटी में समा जाता है, जैसे नमक पानी में घुल जाता है। उसका अपना कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं रहता। उसे तो परमात्मा में मिल जाना होता है। अपना न सुख है, न दुख। जो कुछ मिलता है, वह सब उसी का प्रसाद । वेदना में भी उसी का भाव । आनन्द को तो हर कोई उसकी कृपा मान लेगा पर पीड़ा भी परमात्मा की कृपा हो सकती है, यह बात गले नहीं उतरेगी। पर जब अपना सब कुछ उसको सौंप दिया, जब अन्तर-मन में उसी को विराजमान कर दिया, जब डाल-डाल और पात-पात में उसी का नूर मान लिया, तो पीड़ा में उसको क्यों न जिया जाये। पीड़ा में भी परमात्मा का अहोभाव! जहर का प्याला भी उसका ही प्रसाद! फांसी का फंदा भी उसी की ओर से फूलों का हार! तब एक चमत्कार होता है। लोगों को दिखने में वह फांसी का फंदा दिखता है पर परमात्मा का प्रेमी उसमें कुछ और ही देख जाएगा। वह कुछ और ही पा जाएगा। वह इतना अभिभूत हो उठेगा मानो राजुल को नेमि मिले हैं, राधा को श्याम मिले हैं। तो पहला विकल्प है- मिटने का, खुदी को मिटाने का। दूसरा विकल्प है- व्यक्ति स्वयं परमात्मा होने के लिए कतसंकल्प हो जाए कि मैं स्वयं ही परमात्मा -परम+आत्मा बनूंगा। 'अप्पा सो परमप्पा ।' मेरा आत्मा ही मेरा परमात्मा होगा। किसी के भी चरणों में झुकना नहीं होगा। अन्तर्-दृष्टि ही उसकी एकमात्र चरण-शरण होगी। वह अन्तर्-बोध और अन्तर्-जागरूकता से जिएगा। भीतर के आकाश में भीतर की भगवत्ता का रसास्वादन करना पसन्द करेगा। वह अपने सो परम महारस चाखै/११७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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