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का अहंकार नहीं है। उसके साक्षात्कार का बस एक ही मार्ग हैसमर्पण, सर्वस्व समर्पण.....अहोभावपूर्ण समर्पण.....यदि कर सको तो तुम 'तुम' नहीं रहोगे, तुम 'वह' हो जाओगे। 'वह' यानी जो 'है'।
नमस्कार!
सो परम महारस चाखै/१०६
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