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________________ किरणें नूर बरसा सकती हैं। सौरभ लुटा सकती हैं। रिमझिम-रिमझिम बरसे नूरा, नूर जहूर सदा भरपूरा। एक बात ध्यान रखो -न अंधकार सदा से रहा है, न प्रकाश कभी विलुप्त हुआ है। अंधकार और प्रकाश दोनों ही सदा से रहे हैं। प्रकाश की यात्रा, सत्य की खोज की यात्रा है। अंधकार जीवन में जब-जब भी घनीभूत हुआ, तब-तब मनुष्य के अंतर्-मन में आलोक की आकांक्षा उत्पन्न हुई। प्रकाश की उपलब्धि निश्चित तौर पर महनीय उपलब्धि है पर प्रकाश की आकांक्षा का जन्म लेना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। प्रकाश तो नम्बर दो है, अंधकार का बोध होना यात्रा का मंगलाचरण है। प्रकाश पाना, प्रकाश से भर जाना महान सौभाग्य की बात है पर यह तब होगा जब यात्रा प्रारम्भ होगी। यात्रा प्रारम्भ न हुई, तो मंजिल कहां से मिलेगी? __अंधकार का अहसास होना, अज्ञान का बोध होना आलोक की खोज की तैयारी है। अंधकार का अहसास हो, तो प्रकाश की यात्रा की सम्भावना है। भूख हो, तो ही भोजन का कोई अर्थ है। प्यास हो, तो ही पानी का मूल्य है। भूख के बगैर भोजन और बगैर प्यास के पानी, अपना कितना अर्थ रखेंगे? भोजन का मूल्य भूख में है। मिठास भोजन में नहीं, भूख में है। भूख मीठी हो, तो भोजन भी मीठा-रसीला लगेगा। भूखे को सूखी रोटी भी मेवा जैसी है। भूख न हो, तो मेवा-मिठाई के थाल सामने रख दो, आदमी मुंह फेर लेगा। प्यास हो, तो सरोवर की तलाश खुद-ब-खुद होगी। सरोवर की महिमा मनुष्य की प्यास से है। प्यास पानी का मूल्य है। प्यास ही पानी पर पानी चढ़ाती है। अपने अज्ञान के अंधकार का बोध होना जीवन के लिए शुभ चिह्न है। अंधकार का होना खतरनाक है, अभिशाप है, अंधकार का होना दम घुटना है पर अंधकार का अस्तित्व है। मैं अंधकार से घिरा हूँ, मुझे अंधकार से बाहर निकलना चाहिए, अंधकार से निकलने का फूलों पर थिरकती किरणे/१०० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003857
Book TitleSo Param Maharas Chakhai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1999
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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