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श्रीवीरविजयजीकृत चोसठप्रकारी पूजा. ९१
॥ अथ ॥
॥ तृतीय दिवसेऽध्यापनीयवेदनीयकर्म निवारणार्थ तृतीयपूजाष्टकप्रारंभः ॥
॥ तत्र ॥
॥ प्रथम जलपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ श्रीजुं अघाती वेदनी, जाव लहे शिवशर्म ॥ संसारे सवि जीवने, तब लगे एहिज कर्म ॥ १ ॥ बंधोदय ध्रुव कही, ध्रुवसत्ता होय ॥ पयमी अघाती जाणीए, शाता अशाता दोय ॥ २॥ कर्म विनाशी ने हुवा, सिद्ध बुद्ध जगवान् ॥ ते कारण जिनराजनी, पूजा अष्टविधान ॥ ३ ॥ न्हवण विलेपन कुसुमनी, जिन पुर धूप प्रदीप | अत नैवेद्य फल तणी, करो जिनराज समीप ॥ ४ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ रुमी ने र ढियाली रे वाल्दा०॥ देश ॥ ॥ ॥ न्दवानी पूजा रे, निरमल आतमा रे ॥ तीर्थोदकनां जल मेलाय, मनोहर गंधे ते नेलाय ॥ न्हव० ॥ १ ॥ सुरगिरि देवा रे, सेवा जिन तणी रे ॥
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