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________________ ए‍ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. करतां न्हवण ते निरमल थाय, कनक रजत मणिकलश ढलाय ॥ न्हव० ॥ २ ॥ सुर बहू नाचे रे, माचे वेगशुं रे || गायण देव ते जिनगुण गाय, वैशालिक मुखदर्शन थाय ॥ न्हव० ॥ ३ ॥ चिहुं गति मांहे रे, चेतन रोलीयो रे । सुर नर जे सुखीया संसार, नारक तिरि दुःखनो नंगार ॥ न्हव० ॥ ४ ॥ शे वश सुखमां रे, खामी न सांजरवा रे ॥ तेथे हुं रऊब्यो काल अनंत, मलिन रतन नवि तेज जगत ॥ न्हव० ॥ ॥ ५ ॥ प्रजु नवरावी रे, मेल निवारशुं रे ॥ वेदनी विघटे मणि जलकंत, श्रीशुजवीर मले एकंत ॥ न्हव० ॥ ६॥ ॥ काव्यं ॥ तीर्थोदकैः ॥ १ ॥ सुरनदी ॥२॥ जनमनो० ॥३॥ ॥ अथ मंत्रः ॥ ॥ ॐ श्री परम० ॥ वेदनीयकर्म निवारणाय जलं य० ॥ स्वा० ॥ इति वेदनीयकर्म निवारणार्थं प्रथम जलपूजा समाप्ता ॥ १ ॥ १७ ॥ ॥ अथ द्वितीय चंदनपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ वेदनी कर्म ती कहुं, उत्तरपयमी दोय ॥ जास विवश नवचोकमां, मूंगाणा सहु कोय ॥ १ ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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