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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
तुम दर्शन पामी ॥ ए यांकणी ॥ देव निरय गतिथी लदे, गुणथी नर तिरिया ॥ काजस्सग्गमां मुनि हास्यथी, देवा उतरीया ॥ ए गु० ॥ २ ॥ परिणामे चढती दशा, रूपी द्रव्य अनंतां ॥ जघन्यथी उत्कृष्टथी, सवि द्रव्य मुतां ॥ ए गु० ॥ ३ ॥ क्षेत्र असंख्य अंगुल लघु, गुरुलोक असंखा ॥ जाग असंख्य लघु श्रावलि, उस्सप्पिणी असंखा ॥ ए गु० ॥ ४ ॥ चार नाव द्रव्य एकमां, लघुजाव विशेषे ॥ असंख्य पर्यव द्रव्य प्रत्ये, गुरुदर्शन देखे ॥ ए गु० ॥ ५ ॥ नंदी सूत्रे एणी परे, कयुं श्रवधिना ॥ निराकार उपयोगथी, दर्शन परिमाण ॥ ए गु० ॥ ६ ॥ विनंगे पण दाखीयुं, दर्शन सिद्धांते ॥ तत्त्वार टीका कड़े, समकित एकांते ॥ ए गु० ॥ ७ ॥ तस आवरण दहन जणी, धूपपूजा करीए ॥ श्रीशुनवीर शरण लही, जवसायर तरीए ॥ ए गु० ॥ ८ ॥ काव्यं ॥ अगर मुख्य० ॥ १ ॥ निजगुणाय० ॥ २ ॥ ॥ श्रथ मंत्रः ॥
॥ ॐ श्री परम० ॥ अवधियावरण निवारणाय धूपं य० ॥ स्वा० ॥ इति श्रवधियावरण निवारणार्थं चतुर्थ धूपपूजा समाप्ता ॥ ४ ॥ १२ ॥
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