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श्री वीरविजयजीकृत चोसठप्रकारी पूजा. ३ मूरख मूंगा न लहे परजव, न पडे वली नवकूपे ॥ न ॥३॥ परमेष्ठीने शीश नमावे, फरसे तीरथ नावे जी ॥ विनय वैयावच्चादिक करतां, नरतेशर सुख पावे ॥ ज० ॥४॥ जिम' जिम दय उपशम आवरणा, तिम गुण आविरनावे जी॥श्रीशुजवीर वचनरस लब्धे, संनिन्नश्रोत जणावे ॥ ज०॥५॥ ॥ काव्यं ॥ सुमनसांग ॥ १॥ समयसार ॥२॥
॥अथ मंत्रः॥ ॥ ॐ ही श्री परम ॥ श्रचकुर्दर्शनावरण निवारणाय पुष्पाणि य० ॥ स्वा० ॥ इति अचकुर्दर्शनावरण निवारणार्थं तृतीय पुष्पपूजा समाप्ता ॥३॥११॥ ॥ अथ चतुर्थ धूपपूजा प्रारंनः॥
॥ दोहा॥ ॥अवधिदर्शनावरण क्य, उपशम चगति मांहि॥ दायकनावे केवली, नमो नमो सिह उछाहिं॥१॥ ॥ ढाल चोथी ॥ चंडशेखर राजा थयो॥ए देशी॥
॥श्रवधिरूपी ग्राहको, खट नेद विशेषे॥अवधिदर्शन तेहy, सामान्ये देखे ॥१॥ ए गुण लेश् उपन्यो, परजवथी स्वामी ॥ नवमां सुखीया श्रमे,
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