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श्रीवीरविजयजीकृत चोसवप्रकारी पूजा. ७१
त्रिकाल ॥ ज०॥ एक समे व अधिक शत सीके, टाली नवजंजाल ॥ ज० ॥ ए० ॥ ५ ॥ शिवराज कृषि विनंगने टाली, वरीया शिव वरमाल ॥ ज० ॥ सायर द्वीप असंख्य दिखावे, श्रीशुनवीर दयाल ॥ ज० ॥ ए० ॥ ६ ॥ ॥ काव्यं ॥ डुतविलंबितवृत्तद्वयम् ॥
॥ अगर मुख्यमनोहरवस्तुनः, स्वनिरुपाधिगुणौध विधायिनः ॥ प्रभुशरीरसुगंध सुहेतुना ॥ रचय धूपनपूजनमर्हतः ॥ १ ॥ निजगुणा क्षयरूपसुधूपनं, स्वगुणघातलं प्रविकर्षणं ॥ विशदबोधमनंत सुखात्मकं, सहज सिद्धमहं परिपूजये ॥ २ ॥ ॥ अथ मंत्रः ॥
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॥ श्री श्री परम० ॥ अवधियावरण निवारपाय धूपं य० ॥ स्वा० ॥ इति अवधियावरण निवारणार्थं चतुर्थ धूपपूजा समाप्ता ॥ ४ ॥
॥ अथ पंचम दीपकपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ मनपद्मवश्यावरणतम, दरवा दीपक माल ॥ ज्योतसें ज्योत मिलाइए, ज्ञान विशेष विशाल ॥ १ ॥
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