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श्रीवीरविजयजीकृत चोसरप्रकारी पूजा. ६५ रे॥ सखि ॥१॥ नवमंडल में न देखी। सखि०॥ प्रनुजीनो देदार रे ॥ सखि ॥ कृत्य करी घर जावती। सखि० ॥ खेलत बाल कुमार रे ॥ सखि० ॥२॥ यौवनवय सुख नोगवे। सखि ॥ श्रीमहावीर कुमार रे । सखि० ॥ ज्ञानयी काल गवेषी। सखि ॥ श्राप हुआ अणगार रे॥ सखि० ॥३॥ गुणगणुं लदी बारमुं । सखि० ॥ ज्ञानावरणी हण्यु जेम रे ॥ सखि० ॥केवल लही मुगते गया। सखि॥ अमेपण करशुं तेम रे ॥ सखि॥४॥ स्वामिसेवाथी लहे। सखि ॥ सेवक स्वामिनाव रे । सखि ॥ सालंबन निरालंबने । सखि ॥ करशुं एहवो बनाव रे॥ सखि ॥ ५ ॥ तीस कोमा कोमी सागरू। सखि॥ थिति अंतरमुहत्ते लघीस रे । सखि ॥ बंध चतुर्विध चेत\। सखि०॥ पगई विई रस देस रे॥ सखि०॥६॥ सूक्ष्म बंध उदय वली । सखि॥ उदीरण सत्ता खीण रे । सखि० ॥ स्नातक स्नान मिषे हुवे । सखि॥ज्ञान पमल मलहीण रे॥सखि० ॥७॥ सर्वांगे स्नातक यश् । सखि० ॥ करशं साहेली रंग रे । सखि ॥ सहजानंद घरे रमो।
सखि ॥ श्रीशुजवीरने संग रे ॥ सखि ॥७॥ Jain Educationa fotocal
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