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________________ पंकित श्रीवीरविजयजीकृत चोसठ प्रकारी पूजा. ६३ ॥ अथ पंडितश्रीवीरविजयजीकृत चोसठ प्रकारी पूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ श्रीशंखेश्वर साहिबो, समरी सरसती माय ॥ श्रीशुभ विजय सुगुरु नमी, कहुं तपफल सुखदाय ॥ १ ॥ ज्ञान की सवि जाणता, ते जव मुगति जिणंद ॥ व्रत धरी भूतल तप तप्या, तपथी पद महानंद ॥ २ ॥ दानशक्ति जो नवि हुवे, तो तनुशक्ति विचार ॥ तप तपीए यइ योग्यता, अल्प कषाय आहार ॥ ३ ॥ परनिंदा ढंकी कपट, विधि गीतारथ पास ॥ श्राचार दिनकरे दाखीयो, ते तप कर्म विनाश ॥ ४ ॥ विविध प्रकारे तप कह्यां, आगम रयानी खाए ॥ तेहमां कर्मसूदन तपे, दिन चउसहि प्रमाण ॥ ५ ॥ ज्ञानावरणी कर्मठ, पच्चरका बेदाय ॥ उपवासादिक म कवल, अंतिम तिम अंतराय ॥ ६ ॥ उजमपुं तप पूरणे, शक्ति त अनुसार ॥ तरुवर रूपानो करो, घातीयां शाखा चार ॥ ७॥ चार प्रशाखा पातली, कर्मनो जाव विचार ॥ इंग सय श्रावन पत्र तस, कापवा कनक कुठार ॥ ८ ॥ चोसठ मोदक मूकीए, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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