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________________ मेघराज मुनिकृत सत्तरनेदी पूजा. ॥ अथ सप्तदश वाजित्रपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ ही बजे महुर सर, त्रिजग सुणावे नाद ॥ वीतराग पूजा करो, अंग तजीने प्रमाद ॥ १ ॥ ॥ गीत ॥ राग नट्ट ॥ ६१ ॥ सुर पंच शब्दे की विश्व जणावती, मुक्ति तणां सुख आपतीयां ॥ जो जविका ! तुमे जिनवर पूजो, आलस तजी उछंगतीयां ॥ सुर० ॥ १ ॥ अनंत लाज जाणी वाजित्र बहु प्राणी, मधुर ध्वनि घरचे जिनुआ ॥ मनवांबित फल तत्क्षण थापे, स्थिर राखे जो ए मनुश्रा ॥ सुर० ॥ २ ॥ मेघराज मुनि वंदित रंगजर, सत्तरमी पूजाए चित्त धरूं आ ॥ नाम ठाम द्रव्य जावथी ए जिन, सकल संघने सुखकरु या ॥ सुर० ॥ ३ ॥ ॥ काव्यं ॥ उपेंद्रवज्रावृत्तम् ॥ ॥ मृदंगनेरीवर वेणुवीणा, षड्चामरीऊल्ल रिकिंकिणीनां ॥ जादिकानां च तदा निनादैः, दणं जगन्नादमयं बभूव ॥ १ ॥ मुदा ततस्तुंबरुनारदाद्याः, प्रनोर्गुणालीरुपवीणयतः ॥ सुधाशनादप्यधिकं वितेरुः सुधाशनानां हृदये प्रमोदं ॥ २ ॥ ततश्चलत्कुंम लतारद्दार, - शृंगार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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