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________________ ६० विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. नाटक एहथी टले, फले मनोरथ सर्व ॥ सम्यग्दर्श ना सुख, पामे शमावे गर्व ॥ २ ॥ ॥ दोहरो ॥ ॥ देव कुमर कुमरी मली, नाचे एक शत श्रा ॥ संगतादिक परे करे, घालापे शुद्ध नाट ॥ १ ॥ ॥ राग नह ॥ गीत ॥ ॥ इंद्रादिक एम करे, पूजा तेरी ॥ गिडि गिडि डुमकी मुरज घूमे, जक्ति करे अधिकेरी ॥ इंद्रादिक० ॥ १ ॥ नख शिख लगे वेष सजी, बहु हस्त करी ॥ कुचघन वचे करयुग धरी, शोजती श्रति फिरती ॥ इंद्रा० ॥ २ ॥ वेणु वंश उपांगरव, ताल बाजती बंदे ॥ कुमर कुमरी एक शत श्राव, नृत्यती जिन वंदे ॥ इंद्रा० ॥ ॥ ३ ॥ गगने जलद नाद सुणी, नाचत सुकलापी ॥ कीजेएम सोलमी पूजा, राग नह श्रालापी ॥ इंद्रा०॥४॥ ॥ काव्यं ॥ उपेंद्रवज्रावृत्तम् ॥ ॥ श्रालोकनाकृत विदस्ततोऽस्य, गंधर्व नाट्याधिपती श्रमत् ॥ तूर्यत्रिकं सजयतः स्म तत्र, प्रजोर्निषले पुरतः सुरेंद्रे ॥ १ ॥ इति नृत्यपूजा षोशी ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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