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दादासाहेबनी पूजा. एए खरतरमहिमा धारी ॥ जहर दीया उन अशन पानमें गुरु विधि जानी सारी ॥ पू० ॥ ६॥ जणशाली मुखवर श्रावकसे निर्विष मुखी मंगा॥जहर उतारा तब लोकोमें अंबड निंदा पाच ॥ पू० ॥७॥ मरके व्यंतर दुथा वो अंबम रजोहरण हर लीना ॥ नणशाली व्यंतर वचनोंसे गोत्र उतारा कीना ॥ पू० ॥ ७ ॥ सऊ होय गुरु औघा लेके गोत्र बचाया सारा ॥ हिसार महिमा सद्गुरुकी दीपकका उजियारा ॥ पू० ॥ ए॥ श्लोक ॥अतिसुदीप्तिमयैः खलु दीपकैर्विमलकाञ्चननाजनसं स्थितैः॥ सकल ॥ ॐ ही श्री ॥ पर० ॥ दीपं निर्वपामि ते स्वाहा ॥५॥
॥दोहा॥श्रदतपूजा गुरु तणी, करो महाशयः रंग॥ दति न होवे अंगमें, जीते रणमें जंग ॥१॥
॥राग याशावरी॥अवधूत सो योगी गुरु मेरा॥ए चाल रतन अमोलक पायो सुगुरु सम रतन अमोलक पायो॥ गुरु संकट सबही मिटायो।सु०॥ए आंकणी ॥ विक्रमपुर नगरी लोकनको हैजा रोग सतायो ॥ बहुत उपाय कीया शांतिकका जरा फरक नहीं आयो॥सु र॥१॥ योगी जंगम ब्रह्म संन्यासी
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