________________
४४ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. धूप कराने ॥ गु० ॥ अंग॥ ॥श्लोक ॥श्रगरचन्दनधूपदशाङ्गजैः प्रसरिताखिल दिनु सुधूम्रकैः ॥ सकल ॥ ही श्री ॥ पर० ॥ धूपं निर्वपामि ते स्वाहा ॥४॥
॥दोहा॥दीपपूज कर सुगण नर, नित नित मंगल होत ॥ उजियाला जगमें जुगत, रहे अखंमत जोत ॥१॥
॥चाल ख्यालकी॥ ॥पूजन कीज्योजी नर नारी गुरु महाराजका हो ॥ पू०॥ सिंधु देशमें पंच नदी पर साधे पांचो पीर ॥ लो उपर पुरुष तिराए ऐसे गुरु सधीर ॥ पू० ॥१॥ प्रगट होयके पांच पीरने सात दीयां वरदान ॥ सिंधु देशमें खरतर श्रावक होवेगा धनवान ॥ पू० ॥२॥ सिंधु देश मुलतान नगरमें बड़ा महोत्सव देख ॥ अंबड और गलकाश्रावक गुरुसे कीना हेष॥ पू०॥३॥अणहिलपुर पत्तनमें आवो तो मैं जानूं सच्चा ॥ बडे महोत्सव श्रावेंगे तूं निर्धन होगा कच्चा ॥पू॥४॥ पत्तन बीच पधारे दादा सन्मुख निर्धन श्राया ॥ गुरु बतलाया क्योंरे अंबम अहंकार फल पाया ॥ पू० ॥ ५ ॥ मनमें कपट कीया अंबडने
Jain Educationa Interational
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org