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________________ भए विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥श्लोकः॥ ॥सूरनदीजल निर्मलधारकैः,प्रबलपुष्कृतदाधनिवारकैः ॥ सकलमङ्गलवाचितदायको, कुशलसूरिगुरोश्चरणौ यजे ॥१॥ ॐ ही श्री परमपुरुषाय परमगुरुदेवाय जगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय श्रीजिनदत्तसूरीश्वरायमणिमणिमत जालस्थलाय श्रीजिनचन्प्रसूरीश्वराय श्रीजिनकुशलसूरीश्वराय अकब्बरअसुस्त्राणप्रतिबोधकाय श्रीजिनचन्प्रसूरीश्वराय जलं निर्वपामि ते स्वाहा ॥१॥ ॥ अथ द्वितीय केशरचंदनपूजाप्रारंजः॥ ॥दोहा ॥ केशर चंदन मृगमदा, कर घनसार मिलाप ॥परचा जिनदत्त सूरिका, पूज्या टूटे पाप ॥१॥ ॥चाल बीण बाजेकी॥ ॥दीन दयाल राज सार सार तुं ॥आंकणी ॥ आये जरुअठ नग्र धाम धूम धूम ॥ ● बाजते निशान गैर हर्ष रंग हूं ॥ ह ॥ दो० ॥१॥ मुसलमान मुगलपूत फौज मौजमू ॥ फोत मोत हो गया हायकारतूं ॥ हा० ॥ दो० ॥२॥ सन्न विघ्न देख श्राप हुक्म दीन यूं ॥ लावो मेरे पास श्रास जीवदान डूं ॥ जी० ॥३॥ दो० ॥ मृतक पूत Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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