________________
४७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. पट्टविशेप ॥ ए॥ हुँबम श्रावक वाघमी, अहारे हजार ॥ जैन दयाधर्मी कीये, बरते जैजैकार॥१०॥ दादा नाम विख्यात जस, सुर नर सेवक जास ॥ दत्त सूरि गुरु पूजता, आनंद हर्ष जबास ॥ ११॥ दिहीमें पतसाहने, हुकम उठाया शीस ॥ मणिधारी जिनचंद गुरु, पूजो बिसवावीस ॥ १२॥ ताके पट्ट परंपरा, श्रीजिनकुशल सूरींद ॥ अकबरको परचा दीया, दादा श्रीजिनचंद ॥ १३॥ ऐसे दादाचारको, पूजो चित्त लगाय ॥ जल चंदन कुसुमादि कर, ध्वज सौगंध चढाय ॥ १४ ॥
॥ चाल दादा चिरंजीवो ए देशी ॥ ॥ गुरुराज तणी कर पूजन नवि, सुखकर मिलसी लबिघणी॥ए आंकणी ॥ गुरु दत्त सूरींद जग सुखकारी, गुरु सेवकने सानिधकारी, गुरुचरणकमलनी बलिहारी॥गु०॥१॥ संवत् ग्यारे वार शशी, बत्तीसे जनम्या शुज दिवसी, श्रावककुल हुँबमने हुलसी॥गुरु ॥२॥जसु बाबगसा पितुनाम जणे, वाहडदे माता हर्ष घणे,श्कतालीसे दीदा पजणे॥गुणागुणहतरे ववन पाटधरी,गुरुमायाबीजनोजाप करी,गुरुजगमें प्रगट्या तरणतरी॥ गु०॥४॥मणिधारी जिनचंद उपकारी,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org