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________________ ४४ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. वाजति सोहम्म लोए, त्रिघंटं त्रिघंटं त्रिघंटेति होए ए॥ दस देव राा दोश् चंद सूरा, वाणवंतरा इंद बत्तीस पूरा ॥७॥ तहा वीस आवंति किर जवणवासी, श्म जगमिगंताति चनसहि आसी ॥ सुहम्मादिवो पंचरूवो जिणंदे, निय नबं गिधारीतु पत्तो गिरीदं ॥ ए॥वस्तु॥तबतिबह तबतिबह नीर आणेवी, देवासुर मलिय सवि कणय रयणमय कलस नरहुणि कुसुमंजलि परिवविश्रद हो सासंक निय मण, किम सहि सिंश्लहु वीर जिण जलनिहि प्रमाणे नीर॥ त कंपाविजे मेरु गिरि चरणंगुलि लरधीर॥१॥अर्डपाहाडी बंद ॥ ता रम रमा रमक श्रृंग ढलकरं फुटकं त्रुटई ढोल ॥ ता त्राटक घटक रणण जणकर रुणण जणण जोल ॥ता ग अंबर वजा जल निहि मुन निऊरणारं, ता कायर तंप, कामिणि जंप तुट आजरणाई ॥११॥ ता घण कम्म कमकी सेस सलक्की थरहरि वाराह ॥ता सायर जलजलिया गिरि, ढल ढलिया नह नउ नरनाह ॥ ता दिग्गय गमगमीया गिरि खमह मिया नह नहउ मत्तंड ॥ सहसक चम्मकी सुरगण संकि नहु फुट बंगंड ॥१२॥ता किन्नरी कंपे जम सवि संके Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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