SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 485
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अष्टप्रकारी पूजाध्यापन विधि. पाणीना कलश मूक्या होय त्यां लेवा जाय, अने त्यां जे पुरुष बेसाड्यो बे ते तेने आपे. ते लइ चवीने उजी रहे. पी तेमनी पासेथी श्रावक कलशो लइने उज्जा बना पूजा जणावे ॥ ॥ अथ ष्टकारी पूजाध्यापनविधिः ॥ १ प्रथम स्नात्र करी, उज्ज्वल धोयेलां वस्त्र पहेरी, एक पटे वस्त्रनुं उत्तरासंग करी, मुखकोश बांधी, केशर चंदन बरास घसी अने जूदा केशर थी पोताने ललाटे तिलक करीए. ते करी निर्माल्य उतारी मोरपीबीथी अथवा निर्मल सुकोमल वस्त्रथी जयपाए करी प्रणामपूर्वक जिनबिंब प्रमार्जी, वन्ने हाथने धूप थापी, पवित्र रकेबी मां केशरनो स्वस्तिक कर निर्मल जले जरेलो कलश रकेबीमां राखी, रकेबी हाथमां लइ प्रभु श्रागल उना रहीए. पछी पहेली पूजानो पाठ जणी, बेल्लो मंत्र कही जलपूजा करे. २ पढी पखाल करी, अंगलूहांची लूहीने केशरनी कचोली रकेबी मां राखी, रकेबी हाथमां ल‍ बीजी पूजानो पाठ जणी, मंत्र कही चंदनपूजा करे. ३ एमज त्रीजी पूजामां फूल चढावे. ४ पबी चोथी पूजामां धूपधाएं रकेबीमां राखी For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International ᏚᏫᏒ
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy