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________________ श्रीदेवचंद्रजीकृत स्नात्रपूजा विधि . ४ पाठ जणीने माला चढाववी. पठी हाथमां बूटां फूलो लेवां. ते वखत गाथा कहेवी, ते या प्रमाणे:॥ अथ बूटां फूलपूजा गाथा ॥ -- ॥ उसरणो जिणपुर, परिमल मिलिया उरिक विह संगीया ॥ मुत्तामरे हिवो कुण, मरमल मिलिया उरिक विसं ॥ १॥ उवणेउ मंगलं वो, जिणाण मुहलालि जाव संचलिया ॥ ति पवत्तण समए, तिय सेवी मुक्का कुसुम वुट्ठी ॥ २ ॥ ए पाठ कहीने प्रजुनी आगल फूलो बालवा. हवे श्राजरण तथा वस्त्रो लइने उजा बतां गाथा कहेवी, ते या प्रमाणेः॥ अथ वस्त्राभरणपूजा ॥ ॥ श्लोकः ॥ शक्रो यथा जिनपतेः सुरशैलचूला, - सिंहासनोपरि मितस्नपनाऽवसने ॥ दध्यतैः कुसुमचंदनगंधधूपैः कृत्वार्चनं तु विदधाति सुवस्त्रपूजां ॥१॥ तत् श्रावकवर्ग एष विधिनालंकारवस्त्रादिकां, पूजां तीर्थकृतां करोति सततं शक्त्या तिजक्त्यादृतः ॥ नीरागस्य निरंजनस्य विजिताराते त्रिलोकीपतेः, स्वस्यान्यस्य जनस्य निर्वृतिकृते क्लेशदया कांदया ॥ २ ॥ एम कही आजरण तथा वस्त्रपूजा करवी ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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