________________
श्रीदेवचंजीकृत स्नात्रपूजाविधि. ४५७ जावत नाव महारे ॥ श्रीजिन पर० ॥ ॥ किन्नर अरु गंधर्व महोरग, निरत नीर नित्य सारे ॥श्रीजिन पर० ॥३॥ देवउंऊनि धुनि गर्जत अति, शिर पर सुजस विथारे ॥ श्रीजिन पर ॥ ४ ॥ परमानंद जिनराज जगत्पद, जगजीवन हितकारे ॥ श्रीजिन पर ॥५॥इति कलश ढालवा समय- स्तवन ।
॥ पड़ी रकेबीमां लूण पाणी लश्ने श्रारतिनी परे करवू थने ते वखते मुख थकी गाथा कहेवी, ते भावी रीतेः
॥ अथ लूणउतारण गाथा ॥ ॥ उवहि पमिजग्ग पसरं, पयादिणं मुणिव करे ऊणं ॥ पम सखूण त्तणलाडियं च खूणं हु अवहंमी ॥१॥दोहा॥ पिके विणु मुह जिणवरह, दीहर नयण सलूण ॥ न्हावर गुरु मबर जरिय, जलणी पश्स्स खूण ॥२॥ खूणउतारिह जिणवरह, तिन्नि पयाहिण देउ ॥ तडयड सद्द करंति यह, विजा विज जलेण ॥३॥ गाथा ॥ जं जेण विज विजाइ, जलेण तं तह निदबह सस्सदं । जिणरूप मबरेणुव, फूट लूण तमयमस्स ॥४॥ ए गाथा कहीने लूणने अग्निशरण
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org