SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 459
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीजिन नवअंगपूजन दोहा. ४५१ सुणावे, धरणरायपदवी नीपजावे ॥ श्रा० ॥३॥ क्रोधी कम ह तप लय लावे, जिनदर्शनसे सुरगति पावे ॥ जोग संयोग वियोग बनावे, संयमश्री श्रातम परणावे ॥आ॥४॥ध्यान लहेरीयां काजस्सग्ग जावे, स्वामीकुं वमालय तव गवे ॥ मेघमाली जलधर वरसावे, जब नासा नर नर जल लावे ॥ थाम् ॥ ५॥ तव धरणेघासन कंपावे, पद्मावती साथे तिहां श्रावे ॥ नाथ ऊरध शिर फणीकुं ढलावे, जश् अपराधी देव मरावे ॥ ॥६॥ सांई शरण लही समकित पावे, फणिपति नाटक विधि विरचावे ॥प्रजुचरणे नमी गेह सिधावे, जगदीश्वर घनघाती हरावे ॥ ०॥७॥ साकारे केवल उग पावे, धर्म कही जिननाम खपावे ॥ नूतल विचरी मोद सिधावे, श्रगुरु लघु गुण प्रनु नीपजावे ॥ श्रा ॥ ॥ भारतगतकी आरति गावे, श्रोता वक्ता रति उतरावे ॥ मनमोहन प्रजु पास कहावे, श्रीशुनवीर ते शीश नमावे ॥ आ० ॥ ए ॥ इति आरतिः ॥ ॥ अथ श्रीजिन नवअंगपूजन दोहा ॥ ॥ जल जरी संपुट पत्रमा, जुगलिक नर पूजंत ॥ रूषनचरण अंगुण्डो, दायक नवजल अंत ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy