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________________ ४५० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ४॥ चौद जुवनमां जिनजीने तोसे, कोई नहीं आरति एम बोले ॥ श्रा० ॥५॥ इति रतिः ॥ ॥अथ मंगलदीपकः॥ ॥दीवो रे दीवो मंगलिक दीवो, जुवन प्रकाशक जिन चिरंजीवो॥दी॥१॥चंद सूरज प्रजुतुम मुख केरा, खूबण करता दे नित्य फेरा ॥ दी॥२॥ जिन तुज आगल सुरनी अमरी, मंगलदीप करी दीए जमरी॥दी॥३॥ जिम जिम धूपघटी प्रगटावे, तिम तिम जवनां पुरित दफावे॥ दी० ॥४॥नीर अक्षत कुसुमांजलि चंदन, धूप दीप फल नैवेद्य वंदन ॥ दी० ॥ ५॥ एणी परे अष्टप्रकारी कीजे, पूजा स्नात्र महोत्सव पत्नणीजे ॥ दी०॥६॥इति मंगलदीपकः॥ ॥अथ रतिः ॥ ॥ प्रारति कीजे पास कुमरकी, जनम मरण जय हर जिनवरकी ॥ आ ॥ नयरी वणारसी जनम कहावे, वामा माता प्रनु हुलरावे ॥०॥१॥यौवन वन फल जोगी जणावे, नारी प्रनावती नृप परणावे ॥ काय नीरोग भोग विलसावे, पुरिसादाण। बिरुद धरावे ॥ आप ॥॥ ज्ञान विलोकी कम हरावे, गहन दहनथी फणी निकसावे ॥ सेवक मुख नवकार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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