SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ श्रथ ॥ ॥ देवपालकविकृत स्नात्रपूजा प्रारंजः ॥ ॥पूर्व दिशाए अथवा उत्तर दिशाए बाजोठ मांडी तेना उपर कुंकुंमनो स्वस्तिक करी, पठी तेना उपर एक थाल मूकीए; ते थालमां केशरनो स्वस्तिक करी मांहे पंचतीर्थी प्रतिमा स्थापन करीए. पनी श्रावक पंचामृतनो कलश जरी तेने अंगवूहणे ढांकीने ते कलशने त्यां स्थापन करी नीचे लखेली गाथा कहे ॥ ॥ (गाथा) आर्या ॥मुक्तालंकारविका-रसारसौम्यस्वकांतिकमनीयम् ॥ सहजनिजरूपनिर्जित-जगत्त्रयं पातु जिनबिंबम्॥१॥ए गाथा कही,प्रतिमाजीनां श्रलंकार उतारीए ॥ गाथा॥अवणिय कुसुमाहरणं, पयर पयख्यि मनोहरलायं।जिणरूवं मऊणपीठं, संहियंवो सिवं दिसल॥२॥ए गाथा नणी निर्मात्य उतारीए॥ गाथा॥बालतणम्मि सामिश्र,सुमेरुसिहरम्मि कणयकलसेहिं ॥ तिअसा सुरेहिं एह विर्ड, ते धन्ना जेहिं दिछोसि॥३॥एगाथा कही,कलशे पखाल करी संदेपे पूजीए. पठी स्नात्रकारकना हाथ धूप चंदने वासी Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy