SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 432
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२४ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ अथ श्रीज्ञानविमलसूरिकृत श्रीशांतिनाथजीनो कलश प्रारंनः॥ ॥ श्रीजयमंगलकृत्स्नमभ्युदयतावद्वीप्ररोहाबुदो, दारियमकाननैकदलने मत्तो धुरः सिंधुरः॥ विश्वैः संस्तुतसत्प्रतापमहिमा सौजाग्यनाग्योदयः, स श्रीशांतिजिनेश्वरोऽनिमतदो जीयात् सुवर्णवविः॥१॥ अहो नव्याः शृणुत तावत् सकलमंगलकेलिकलालीलासनकाः लीलारसरोपितचित्तवृत्तयः विहित. श्रीमजिनेअनक्तिप्रवृत्तयः सांप्रतं श्रीमछांति जिनेंजन्मानिषेककलशो गीयते ॥ ॥ राग वसंत, तथा नट्ट, देशाख ॥ ॥ श्रीशांति जिनवर, सयल सुखकर, कलश नणीए तास ॥ जिम नविक जनने, सयल संपत्ति, बहुत लील विलास ॥ कुंरु नानि जनपद, तिलक सम वम, हविणार सार ॥ जिननयरी कंचन, रयण धण कण, सुगुणजन आधार ॥१॥ तिहां राय राजे, बहु दिवाजे, विश्वसेन नरिंद ॥ निज प्रकृति सोमह, तेज तपनह, मानुं चंद दिणंद ॥ तस पण वखाणी, पट्टराणी, नामे अचिरा नार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy