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श्रीगंजीरविजयकृत नवपदपूजा. ४०५ अतुल, अमल विपुल, अकल सरल, उज्ज्वल चरण, निर्मल नावे रे ॥ न ॥२॥
॥ ढाल जी ॥ राग काफी वसंतनी होरी॥ ॥ बावरे मत मारो पिचकारी॥ए चाल॥ ॥ पूजो चारित्र जग जयकारी, जयकारी रे, पूजो जग जयकारी, मुनि अधिकारी, गृहीने देशे निहारी, हेरी लाला ॥ गृ०॥देशविरति ने सर्व विरति जे, चक्री लीए हितधारी, तृण परे षट् खंम बांरी ॥ पू० ॥१॥ श्रदय सुखकारी अघहारी, अशरण शरण विहारी, हेरी लाला ॥०॥ रंक हुवा परमेश्वर जेहथी, इंज नरिंद नम्यारी,झानानंदी जुहारी॥पू०॥२॥बार मास जे संजम धारी, अनुत्तर सुरसुख पारी, हेरी लाला ॥अ॥शुकल शुकल अनिजात्य ते उपर, पाप खपन अधिकारी, खपी तन बंध पुनारी॥पू०॥३॥चय श्रम कर्मनो संचय धारी, रिक्त करे खाली कारी, हेरी लाला॥ रि०॥ चारित्र नाम नियुक्ति धारी,नाम अतुल सुखकारी, नमुं तस वार हजारी ॥ पू०॥४॥
॥ ढाल ३ जी ॥ राग मारुणि ॥ ॥पिया पर घर मत जाणं रे,कर करुणा महाराज॥पि॥ए चाल॥
॥जीया चिद् चरण बनाउं रे, रमी निज गुण
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