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________________ श्री सकलचंदजी उपाध्यायकृत सत्तरनेदी पूजा. ३३ ॥ एकादश कुसुमगृदपूजा प्रारंभः ॥ ॥ केदारगोमीरागेण गीयते ॥ ॥ विविध कुसुमे रच्युं, विश्वकर्मा सच्युं, कुसुमगेहं ॥ रुचिर सम जागशुं, सुरविमाना जिस्युं, रयणरेहं ॥ १ ॥ तोरणजालशुं, कुसुमनी मालशुं, शोनतुं ए ॥ गुछ चंद्रोदय, कुमखावृंद जे, थोजतुं ए ॥ २ ॥ ॥ गीत || राग केदारो || अने बिहाग || ॥ मेरो मन रम्यो जिनवर कुसुमघरे, दांरे कुसुमघरे || मेरो० ॥ विविध जुगति वर कुसुमकी जाति जाति, जेसी अमरघरे ॥ मेरो० ॥ १ ॥ कुसुम कुमख चंद्रोदय तोरण, जालिक मंगप जाग ॥ एकाद शमी पूजा करतां, अविचल पद जवि माग | मेरो० ॥ २ ॥ इति एकादश कुसुमगृहपूजा समाप्ता ॥ ॥ द्वादश कुसुममेघपूजा प्रारंभः ॥ ॥ मल्लाररागेण गीयते ॥ ॥ पंच वर वरनो, विबुध जेम कुसुमनो, मेघ बरसे ॥ चमर चमरी तणां युगल रसियां फरे, त्रिजग दरषे ॥ १ ॥ पगर वर फूलना, पंचवर्णो करी, सुकृत तरशे ॥ बा - रमी पूजमां, हर्ष तेम जेम मले, कनक परसे ॥२॥ वि० ३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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