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श्रीगंजीर विजयकृत नवपदपूजा.
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॥ ० ॥ ५ ॥ एक वार लड़े कायक समकित दरशनी असंख्य उदाम ॥ ० ॥ ६ ॥ जे विन ज्ञान न होवे साचो, व्रततरुन फले काम ॥ ० ॥ ७ ॥ जे निफल मोक्ष न जे विनु पावे, समकित बल हे उदाम ॥ अ० ॥ ८ ॥ समसठ ने सोहे ज्युं सुरतरु, ज्ञान चरण मूल गम ॥ ० ॥ ए ॥
॥ ढाल ३ जी ॥ राग वढंस ॥ || हमारे को खेले बाहोरी, जामे श्रावागमनकी दोरी ॥ ए चाल ॥
॥ जीया नम दंसण श्रातम सोरी, जामे रीऊ रही शिवगोरी ॥ जी० ॥ दाय उपशम रस वश गुण आये, सम संवेगे सजोरी ॥ यास्तिक अनुकंपादिक प्रसरे, क्या मुनि श्राद्ध कहोरी ॥ जी० ॥ १ ॥ वीर जिणंद वचनसें नीकसी, वाणी सुधारस गोरी ॥ सुजश वृद्धि करी नवल तरंगे, गंजीर परम हित जोरी ॥ जी० ॥ २ ॥ ॥ काव्य ने मंत्र बोलवां ॥ इति दर्शनपदपूजा || ॥ अथ ज्ञानपदपूजा मी ॥ ॥ दोहा ॥
॥ निविम अज्ञान तिमिर हरी, प्रकाशे वस्तु मात्र ॥ नमो नमो ज्ञान दिनपति, उदयो दिन ने रात्र ॥ १ ॥
वि० २६
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