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४० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. विन ज्ञान अज्ञान , चरण जीसो जवकूप ॥ प्रकृति सग दय उपशमे, तव लही देख निज रूप ॥४॥ ॥ ढाल १ ली॥ राग देश ॥ मुलतानी ख्याल ॥ ॥प्रजु तोरी साची सुधारस वाणी ॥ ए चाल ॥ ॥नम जीया सम्यग्दसण रागे॥ए टेकातत्त्व प्रतीति स्वरूप तस जानी, निर्धार स्वन्नाव तां जागे॥न॥१॥ जे चेतन गुण अरूपी अनुपम,श्रका धर्म प्रगटे नागे ॥ न० ॥ सवि पर श्हा शमे शुरू सत्ता, प्रगट लखन रुचि जागे ॥ न० ॥॥ बहुमान परिणति वस्तु धरमे, हेतु गवेषण मागे ॥ न ॥ साध्य लद धरी करे सब करणी, वास्तवी संपत्त रागे ॥ न० ॥३॥
॥ ढाल जी ॥ राग जंगलो ॥ ॥ तीहारे सैयां रंगमें नीने नयन ॥ ए चाल ॥ ॥अरचो जवि सम्यग्दर्शन धाम ॥०॥ शुद्ध देव गुरु धर्म परखीने, श्रझा करण परिणाम ॥१०॥१॥ गुण जीयां पावे तेह कहीजे, सकल सुधर्मनो गम ॥ अ॥२॥ मल उपशम क्षय उपशम यथी, उपजे त्रिविध अनिराम ॥०॥३॥ सम्यग्रदर्शन नम जिनवचने, अनंग सुमन विशराम ॥ ॥४॥ पंच वार उपशम क्षय उपशम वार असंख्य जे पाम
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