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________________ ३०‍ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ ढाल २ जी ॥ राग श्याम कल्याण ॥ ॥ रीषन विहारी तोरी तो बबी न्यारी ॥ ए चाल ॥ ॥ सुगुण विहारी सिद्ध हि निज पद धारी ॥ पूजो सु०॥ योगीपणेमें जे इहां फरसे ॥ (ते) विनु फरस नज बारी पूजो ॥ सु०॥ १ ॥ अफरस गति करते ऊर्ध्व जाये, एक समये रुजु चारी ॥ सु० ॥ तनु त्रिजाग न्यून अवगाहन, करी वरी शिवनारी ॥ सु० ॥ २ ॥ पूर्व प्रयोग ने गतिपरिणामे, श्रबंध संग निहारी ॥ सु० ॥ हेतु चार ए मुक्त शिवगमने, एक समय गति - कारी ॥ सु०॥३॥ निरमल सिद्ध शिलाथी एक जोजन, लोकान्ते रहे अविकारी ॥ सु० ॥ सादि अनंत थिति सवि काले, सिद्ध हि आनंदकारी ॥ सु० ॥ ४ ॥ जस सुख जाने कहीं न शकाये, केवली सर्व निहारी ॥ सु० ॥ जेम पुर रुद्धि वनचर जानी, उपमा विन न उच्चारी ॥ सु० ॥ ५ ॥ ज्योतिमें ज्योत मिली जस अनुपम, सर्व उपाधि निवारी ॥ सु० ॥ श्रतमराम रमापति सहज, सिद्ध समाधि विहारी ॥ सु० ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ३ जी ॥ राग सोरठ ॥ ॥ समर मन सिद्ध सनातन रंग ॥ ए यांकणी ॥ नित्य रूपी स्वजाव निहारो || केवल युगल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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