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________________ ३० विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ सप्तम कुसुमच्यांगीरचनारूप पूजा प्रारंभः ॥ ॥ गोमीरागेण गीयते ॥ ॥सातमी पूजामां वरणक फूलशुं जवि करे ए॥ चंपक दमणलो मरुन जासुलशुं चितरे ए ॥ श्रांगीय केतकी विच विच शोजती देखीए ए ॥ श्रगीय मिष शिवनारीने कागल लेखीए ए ॥ १ ॥ ॥ गीत ॥ राग मालवी ॥ गोमी ॥ ॥ कुसुम जाति श्रांगी मनखंते, पंच वर्णनी जाते रे ॥ मांदे विविध कथीपा जाते रे ॥ सूरियाजादि करे जिन पूजा, सकल सुरासुर गाते रे ॥ कुसुम० ॥ १ ॥ चंपकशुं दमणो मनरमणो, संजाराग ज्युं श्यामा रे ॥ पंच वर्ण यांगी प्रभु अंगे, रचयति ज्युं सुररामा रे ॥ कूषन कूट चक्की नामा रे ॥ कुसुम० ॥ २ ॥ इति पंच वर्ण कुसुमजातियांगीरचनारूप सप्तम पूजा समाप्ता ॥ ७ ॥ हमणां पण ते संप्रदाये विविध जातिनां फूलनी यांगी करता देखाय बे ॥ ॥ अष्टम चूर्णपूजा प्रारंभः ॥ ॥ केदार, कमोद, कल्याणरागेण गीयते ॥ दोहा ॥ ॥घनसारादिक चूरणं, मनहर पावन गंध ॥ जिनपति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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