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श्रीसकलचंदजी उपाध्यायकृत सत्तरनेदी पूजा. Vए नहीं कोहे॥पारग०॥१॥ विविध कुसुमजातिशुंजब, पंचमी पूजा पूजे॥तब नविजनके रोग शोग, सवि उपअव ध्रुजे॥पारग०॥॥इति पंचम पुष्पपूजा समाप्ता॥
॥षष्ठ पुष्पमालपूजा प्रारंनः॥
॥ देशाखरागण गीयते ॥ ॥चंपकाशोग पुन्नाग वर मोगरा, केतकी मालती महमहंती ॥ नाग प्रियंगु शुचि कमल सुबोल सिरी, वेलि वासंतिका दमन जाति ॥१॥ कुंद मचकुंद नवमालिका वालको, पामल कोमल कुसुम गुंथी॥ सुरनिवर दाम जिनकंठे बेठी वदे, चमर मुख हुँ तुम्हे सुखी मुंथी ॥२॥
॥ गीत ॥ राग सबाब ॥ ॥ कंपीछे दाम दी प्रनु हमेरे पाप नीठे,ज्युं शशी देखत जाय तन ताप ॥ पंचवर्णी सब कुसुमकी कंठ
वी, गगने सोहती जेसे सुरपतिचाप ॥ कंठ ॥१॥ लाल चंप गुलालवेली, जाई मोगर दमन नेली ॥ गुंथी विविध कुसुम सब जाति, ही माल चडे दिशि वासती ॥ तव सुरवधू परे नरवधू गाती ॥ कंठ॥॥इति षष्ठ पुष्पमालपूजा समाप्ता ॥६॥
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