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३६० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. पूजा करत जिनवरकी, चेतन थावरण सर्व मटे रे॥ शुद्ध दशा दर्पण पूजाथी,अशुभ दशा तस सर्व कटे रे शुरु०॥४॥इति षोमश दर्पणपूजा समाप्ता ॥ १६ ॥ ॥ अथ सप्तदश नैवेद्यपूजा प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥ विविध युक्ति पक्वान्नशुं, लेश् चित्त उदार ॥ अणाहारी पद पामवा, विनवू वारंवार ॥१॥
॥ ध्रुवपदं ॥ पूर्वी सोरठरागण गीयते ॥ ॥जिणंदराय! नैवेद्यथाल जरीरी॥जिणंद॥०॥ हेमपात्र जरी विविध\ रे, कंसार शींग धरी री॥ जि० ॥ नै ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ घेबर फीणी पेंमा पतासां, साकरपाक करी री ॥ खाजां खुरमा खांत\ लावो,खीर खांमघृतरांपूरी री॥जिणानै०॥२॥शाल दाल शुज सालणां रे, शाक पाक करी जेह ॥ एहविधि नैवेद्यथाल जरीने, अणाहारी पद लीए तेह ॥ जि॥॥३॥इति सप्तदश नैवेद्यपूजा समाप्ता॥१७॥ ॥अथ अष्टादश फलपूजा प्रारंनः ॥
॥ दोहा ॥ ॥ पूजा करतां नीपजे, तरुवर सिंचे जेम ॥ तरुवर फल जेम आपशे, पूजाफल होय तेम ॥१॥
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