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________________ श्रीसकलचंदजीकृत एकवीशप्रकारी पूजा. ३६५ ॥तेम नविजन ध्वजपूजा करतां,तेणे नरजव फल लीधो रे॥क०॥४॥ इति छादश ध्वजपूजा समाप्ता॥ १५ ॥ ॥ अथ त्रयोदश चामरपूजा प्रारंनः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ सिंहासन जिन थापीने, पूजा करे सुरराय ॥ चामर प्रनु शिर ढालतां, करतां पुण्य उपाय ॥१॥ ॥ ध्रुवपदं ॥ काफीरागण गीयते ॥ ॥तेम तुमे करो नविकजन, चामर वींजे सुरराज॥ तेम तुमे ॥ ७ इंसादिक सन्मुख गढे, करता जन्म शुज काज ॥ तेम तुमे०॥१॥ ए आंकणी ॥ हेम तार सुर गुंथी करथी, करता जमित जमाव ।। रत्नमयी दंड रत्नमें जडता, करता नक्ति प्रजाव ॥ तेम तुमे ॥२॥मणि माणिक मोतीमें जमता, हीरा लाल विशाल ॥ चामर वींजे सुरमन रीजे, वींजे यश उजमाल ॥ तेम तुमे० ॥३॥णविध पूजा तेरमी कीजे, कुशल देम तस दीजे॥सुरपति नक्ति सहित करे पूजा, सुरसुख शुन फल लीजे ॥ तेम तुमेण ॥४॥ इति त्रयोदश चामरपूजा समाता ॥ १३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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