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३६० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. सार, सुरपति पूजा करे निरधार ॥ जन्म कृतारथ तेह निस्तार ॥ ३ ॥ अमर अमरी करे पूजा गुण पामी,चित्त धरे शिवपुर श्रारामी॥परपरिणति करीए निष्कामी ॥४॥इति षष्ठ चूधाचूर्णपूजा समाप्ता॥६॥ ॥अथ सप्तम पुष्पमालपूजा प्रारंनः॥
॥ दोहा ॥ ॥ रत्नमाल सुरपति करे, कुसुम सहित सुगंध ॥ प्रजुकंठे आरोपीने, प्रफुतित होय सुरवृंद ॥१॥
॥ सारंगरागण गीयते ॥ ॥ मनमोहन माला कीजीए, विविध जाति सुर कुसुम ग्रहीने, गुंथी जिनकंठे दीजीए॥मनः॥१॥ ए श्रांकणी ॥ चंपक केतकी कुंद जासुलवर, लाल गुलाल मांहे लीजीए ॥ मन ॥२॥ मोगरो मालती दमणो पुन्नागरां, गुंथी सुरपति रीजीए ॥ मन ॥३॥ सप्तमी पूजा करत एम सुरपति, अनुनवरस. जुनीजीए॥मन॥४॥ सूर्यान नावे करी जिनपूजा, उपशम रस नरी पीजीए ॥ मन० ॥ ५॥ इति सप्तम पुष्पमालपूजा समाता ॥ ७ ॥
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