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________________ श्रीदेवचंजीकृत स्नात्र पूजा. १ शक्ति शुचि नक्ति एम जावता॥३॥ समकित बीज निज आत्म थारोपता, कलश पाणी मिषे नक्तिजल सिंचता॥ मेरुसिहरोवरे सर्व आव्या वही, शक उत्संग जिन देखी मन गहगही ॥४॥ ॥ वस्तु बंद ॥ ॥ हंहो देवा हंहो देवा अणा कालो, अदिक पुवो तिलोय तारणो तिलोय बंध, मित्त मोह विसणो अणा तिएहा विणासणो, देवादिदेवो दिउ बोहिय कामेहिं ॥५॥ ॥ ढाल तेहीज ॥ ॥ एम पत्नणंत वण जवण जोईसरा, देव वेमाणिया नत्ति धम्मायरा॥ केवि कप्पहिया केवि मित्ता. णुगा, केवि वर रमणि वयणेण अश् छुगा ॥६॥ वस्तु बंद ॥ ॥ तब अचुय, तब अचय इंद आदेस ॥ कर जोम। सवि देवगण, लेय कलस आदेस पामीय ॥ अद्भुत रूप सरूप जुश्र, कवण एह उत्संगे सामिय ॥ इंद कहे जगतारणो, पारग अम परमेस ॥ नायक दायक धम्म निहि, करीए तसु अनिसेस ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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