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२० विविध पूजीसंग्रह नाग प्रथम. शिल परजी, सिंहासन सासय वसे ॥ तिहां श्राणीजी, शके जिन खोले ग्रह्या ॥ चौसहेजी, तिहां सुरपति आवी रह्या ॥
॥त्रुटक ॥ ॥श्रावीया सुरपति सर्व जक्ते, कलश श्रेणी बनाव ए ॥ सिद्धार्थ पमुहा तीर्थ औषधि, सर्व वस्तु अणाव ए ॥अनुश्रपति तिहां हुकम कीनो, देव कोमाकोमीने ॥ जिन मानारथ नीर लावो, सवे सुर कर जोमीने ॥५॥
॥ ढाल ॥ सातमी॥ ॥ शांतिने कारणे इंछ कलशा नरे॥ए देशी ॥ ॥श्रात्मसाधन रसी देवकोमी हसी,उबसीने धसी दीरसागर दिशि ॥ पनमदह आदि दह गंगपमुहा नई, तीर्थजल अमल लेवा जणी ते ग॥१॥जाति अम कलश करी सहस अहोतरा, बत्र चामर सिंहा. सण शुजतरा ॥ उपकरण पुप्फ चंगेरी पमुद्दा सवे, आगमे नाषीयां तेम आणी ग्वे ॥२॥ तीर्थजल जरीय कर कलश करी देवता,गावता नावताधर्म उन्नतिरता॥तिरिय नर अमरने हर्ष उपजावता,धन्य अम
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