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________________ श्री विजयलक्ष्मी सूरिकृत वीश स्थानकनी पूजा. १७७ ॥ अथ सप्तम साधुपदपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ स्याद्वाद गुण परिणम्यो, रमता समता संग ॥ साधे शुद्धानंदता, नमो साधु शुभ रंग ॥ १॥ ॥ ढाल ॥ कर्मपरीक्षा करण कुमर चल्यो रे ॥ ए देशी ॥ ॥ मुनिवर तपसी कृषि श्रणगारजी रे, वाचंयम व्रती साध ॥ गुण सत्यावीशे जेह अलंकरया रे, विरमी सकल उपाध ॥ जवियण वंदो रे सातमुं पद जलं रे ॥ १ ॥ एकणी ॥ नवविध जावलोच करे संयमी रे, दशमो केशनो लोच ॥ गणत्रीश पासवा नेद बे रे, वारे तस नहीं जग शोच ॥ ज० ॥२॥ दोष समतालीश आदारना वारता रे, अतिक्रम न करे चार ॥ मुनिने अर्थे समारे मंदिरां रे, परिहरे एह आचार ॥ ज० ॥ ३ ॥ नरना दोष ढार निवारीने रे, दीक्षा शिक्षा दीए सार ॥ पुण्य पाप पुल हेयरूपता रे, सम जावे मुगति संसार ॥ ज० ॥ ४ ॥ सत्य हेतु जव अटवी मूकवा रे, फरस्युं बहु गुणठाण ॥ योग अध्यातम ग्रंथनी चिंतना रे, किरिया नाप पहाए ॥ ज० ॥ ५ ॥ पूरव व्रत विराधक योगथी रे, कूटलिंगीपएं थाय ॥ दंजजाल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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