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________________ २६४ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. श्वर साहिबो रे, चोमासुं रही जाय ॥ स ॥ जे० ॥२॥ सागर मुनि एक कोडिशुं रे, तोड्या कर्मना पास ॥ स० ॥ पांच कोमि मुनिराजशंरे, नरत लह्या शिववास ॥ स ॥ जे ॥३॥ आदीश्वर उपकारथी रे, सत्तर कोकि साथ ॥ स० ॥ अजितसेन सिकाचले रे, काल्यो शिववहू हाथ ॥ स॥जे ॥४॥ अजितनाथ मुनि चैत्रनी रे, पूनमे दश हजार ॥स ॥ आदित्ययशा मुक्ति वस्या रे, एक लाख यणगार ॥ स० ॥ जे ॥५॥अजरामर देमकरु रे, श्रमरकेतु गुणकंद ॥ स ॥ सहस्रपत्र शिवंकरु रे, कर्मदय तमःकंद ॥ स ॥ जे० ॥६॥राजराजेश्वर ए गिरि रे, नाम डे मंगलरूप ॥ स०॥ गिरिवर रज तरुमंजरी रे, शीश चढावे नूप ॥ स० ॥ जे॥७॥ देवयुगादिपूजतारे, कर्म होये चकचूर ॥साश्रीशुजवीरने साहिबा रे,रहेजो हश्मा हजूर ॥साजे०॥७॥ काव्यं । गिरिवरं ॥ ॥अथ मंत्रः॥ ॥ॐ ही श्री परम ॥ इति अष्टमानिषेके उत्तरपूजा समाप्ता ॥ सर्व गाथा ॥ ३१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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