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________________ २६० विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. मणिकंत हो जिनजी ॥ जति० ॥ ६ ॥ मेरुमहीधर ए गिरिरे, नामे सदा सुख थाय ॥ श्रीशुजवीरने चित्तथी रे, घमी न महेल जाय हो जिनजी ॥ नक्ति ० ॥ ७ ॥ ॥ काव्यं ॥ गिरिवरं० ॥ ॥ अथ मंत्रः ॥ ॥ ॐ श्री श्री परम० ॥ इति पंचमानिषेके उत्तरपूजा समाप्ता ॥ सर्व गाथा ॥ ४७ ॥ ॥ अथ षष्ठ पूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ सिद्धाचल सिद्धिवस्या, गृही मुनिलिंग अनंत ॥ आगे अनंता सीकशे, पूजो जवि जगवंत ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ चतुरेमें चतुरी कोण, जगतकी मोहनी ॥ ए देशी ॥ ॥ सखरे में सखरी कोण, जगतकी मोहनी ॥ रुषज जिनंदकी पडिमा जगतकी मोहनी ॥ रयणमय मूर्ति जरा, जगतकी मोहनी ॥ हां हां रे ॥ जग० ॥ प्यारे लाल, जगतकी मोहनी ॥ ए श्रकणी ॥ जरते जराइ सोय, प्रमाना ले करी ॥ कंचन गिरिए बेठाइ, देखत डुनिया वरी ॥ हां हां रे देखत० ॥ प्या० ॥ देख० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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