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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
मणिकंत हो जिनजी ॥ जति० ॥ ६ ॥ मेरुमहीधर ए गिरिरे, नामे सदा सुख थाय ॥ श्रीशुजवीरने चित्तथी रे, घमी न महेल जाय हो जिनजी ॥ नक्ति ० ॥ ७ ॥ ॥ काव्यं ॥ गिरिवरं० ॥
॥ अथ मंत्रः ॥
॥ ॐ श्री श्री परम० ॥ इति पंचमानिषेके उत्तरपूजा समाप्ता ॥ सर्व गाथा ॥ ४७ ॥
॥ अथ षष्ठ पूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ सिद्धाचल सिद्धिवस्या, गृही मुनिलिंग अनंत ॥ आगे अनंता सीकशे, पूजो जवि जगवंत ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ चतुरेमें चतुरी कोण, जगतकी मोहनी ॥ ए देशी ॥
॥ सखरे में सखरी कोण, जगतकी मोहनी ॥ रुषज जिनंदकी पडिमा जगतकी मोहनी ॥ रयणमय मूर्ति जरा, जगतकी मोहनी ॥ हां हां रे ॥ जग० ॥ प्यारे लाल, जगतकी मोहनी ॥ ए श्रकणी ॥ जरते जराइ सोय, प्रमाना ले करी ॥ कंचन गिरिए बेठाइ, देखत डुनिया वरी ॥ हां हां रे देखत० ॥ प्या० ॥ देख०
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