________________
२१३
श्रीवीरविजयजीकृत द्वादशत्रत पूजा. ॥ अथ द्वितीयत्रते तृतीय वासपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ चूर्ण सरस कुसुमे करी, घसी केसर घनसार ॥ बहुल सुगंधि वासथी, पूजो जगत्दयाल ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ राग भैरवी ॥ यमुनामां जाइ पड्यो रे, बालक मेरो यमुनामां जाइ पड्यो || ए देशी ॥
॥ मुक्तिसें जाइ मध्यो, मोहन मेरो मुक्तिसें जाइ मल्यो || मोहसें क्युं न कस्यो रे ॥ मोहन० ॥ नामकरम निर्जरणा देते, जक्तको नाव जखोरे ॥ मो० ॥ उपदेशी शिवमंदिर पहोते, तोसे बनाव ग्यो रे ॥ मो० ॥ १ ॥ यानंदादिक दश युं बोली, तुम कने व्रत उच्चस्यो रे । मो० ॥ पांच मोटकां जूठ न बोले, मेंबी आश नस्यो रे ॥ मो० ॥ २ ॥ बीजुं व्रत धरी जूठ न बोलुं, पण अतिचारे मस्यो रे । मो० ॥ वसु राजा श्रासनसें पडीयो, नरकावास जरयो रे ॥ मो० ॥ ३ ॥ मांसाहारी मातंगी बोले, जानु प्रश्न धरयो रे ॥ मो० ॥ जूठा नर पग भूमिशोधन, जल बंटकाव कस्यो रे ॥ मो० ॥ ४ ॥ मंत्रनेद रह नारी न कीजे, अती खाल हयो रे || मो० ॥ कूट लेख मिथ्या
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org