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________________ २१२ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. कीच, करीने पूजुं रे ॥ तोहे पहेले व्रत अतिचार, थकी हुं ध्रुजुं रे ॥ ० ॥ २ ॥ जीवहिंसानां पच्चरकाण, थूलथी करीए रे ॥ डुविहं तिविदेणं पाठ, सदा अनुसरीए रे ॥ वासी बोलो विदल निशिनद, हिंसा टालुं रे ॥ सवा विश्वा केरी जीव, दया नित्य पालु रे ॥ ० ॥ ३ ॥ दश चंदरुथा दश गण, बांधीने रही ए रे || जीव जाये एहवी वात, केहने न कही ए रे ॥ वध बंधन ने वविछेद, जार न जरीए रे ॥ जात पाणीनो विच्छेद, पशुनेन करीए रे ॥ श्र० ॥४॥ लौकिक देव गुरु मिथ्यात्व त्र्याशी नेदे रे ॥ तुज श्रागम सुणतां आज, होय विच्छेदे रे ॥ चोमासे पण बहु काज, जयणा पालुं रे || पगले पगले महाराज, व्रत जुवालुं रे ॥ ० ॥ ५ ॥ एक श्वास मांहे सो वार, समरुं तुमने रे ॥ चंदनबाला ज्यं सार, आपो थमने रे ॥ माबी हरिबल फलदाय, एत्रत पाली रे ॥ शुन वीर चरण सुपसाय, नित्य दीवाली रे ॥ श्रा० ॥ ६ ॥ ॥ काव्यं ॥ श्रद्धा संयुक्त० ॥ १ ॥ ॥ अथ मंत्रः ॥ श्री ॥ परम० ॥ चंदनं य० ॥ स्वा० ॥ ॥ ॐ ॥ इति प्रथमत्रते द्वितीय चंदनपूजा समाप्ता ॥ २ ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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