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________________ श्रीवीरविजयजीकृत चोसवप्रकारी पूजा. १५१ कुली रे, निलुककुल अवतार ॥ प्र० ॥ जिनदर्शन नवि शीश नमे रे, ते शिर वदेता नार ॥प्र॥४॥ गर्दन जंबुक नीच तिरी रे, किदिबषिया जे देव ॥प्र॥ जा दीए सुर भागले रे, परजवनिंदक देव ॥प्र०॥ ५ ॥ जीव मरीचि कुलमदथी रे, विप्र त्रिदंभिक थाय ॥प्राश्रीशुनवीर जिनेश्वरु रे, देवानंदा घर जाय॥प्र० ॥६॥ काव्यं ॥ जवति दीप० ॥१॥शुचिमना॥२॥ ॥अथ मंत्रः ॥ ॥ॐ ही श्री परम ॥ नीचैर्गोत्रोदयनिवारणाय दीपं य० ॥ खा० ॥ इति नीचैर्गोत्रोदय निवारणार्थं पंचम दीपकपूजा समाप्ता ॥५॥ ५३॥ ॥ अथ षष्ठादतपूजा प्रारंनः॥ ॥दोहा॥ ॥नीच कुलोदय जिनमति, पूर थकी दरबार ॥ तुज मुख दरशन देखतां, लोक वडो व्यवहार ॥१॥ ॥ ढाल ही ॥ वंदो वीर जिनेश्वर राया॥ए देशी॥ ॥अदतपूजा गोधूम केरी, नीचैर्गोत्र विखेरी रे॥ तुज आगमपूर सुंदर शेरी, वक्र नहीं जवफेरी रे ॥ श्रदत॥१॥सासायण लगे बंध कहावे, पांचमे Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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